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अंबरनाथ का 11वीं सदी का शिव मंदिर खतरे में: एएसआई और नगर निगम आमने-सामने

अंबरनाथ का 11वीं सदी का शिव मंदिर खतरे में: एएसआई और नगर निगम आमने-सामने

अंबरनाथ का 11वीं सदी का शिव मंदिर खतरे में: वालधुनी नदी किनारे स्थित 11वीं सदी का अंबरनाथ शिव मंदिर संरक्षित धरोहर है। एएमसी पर अवैध निर्माण और एएमएएसआर अधिनियम उल्लंघन के आरोप लगे हैं। एएसआई की रिपोर्ट में मंदिर की दीवारों और मूर्तियों को नुकसान की पुष्टि हुई।

अंबरनाथ (महाराष्ट्र) – वालधुनी नदी के तट पर स्थित 11वीं सदी का अंबरनाथ शिव मंदिर, जिसे शिलाहार वंश ने बनवाया था, आज गंभीर खतरे में है। यह प्राचीन धरोहर, जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने संरक्षित स्मारक घोषित किया है, कथित तौर पर स्थानीय नगर परिषद (एएमसी) की विकास योजनाओं की भेंट चढ़ती दिख रही है।

आरोप और विवाद: अंबरनाथ का 11वीं सदी का शिव मंदिर खतरे में

पर्यावरण एनजीओ हिराली फाउंडेशन की संचालक और वकील सरिता खानचंदानी ने आरटीआई के माध्यम से जानकारी प्राप्त कर आरोप लगाया कि एएमसी ने एएसआई से मिली अनुमति का दुरुपयोग किया। यह अनुमति केवल मौजूदा सड़क की मरम्मत और मंदिर परिसर के बाहर जलकुंड की सफाई हेतु दी गई थी, लेकिन नगर परिषद ने निषिद्ध क्षेत्र (100 मीटर के भीतर) में व्यावसायिक प्लाज़ा और अन्य निर्माण कार्य शुरू कर दिए।

खानचंदानी का दावा है कि 300 मीटर के क्षेत्र में भी नियम तोड़े गए। नदी किनारे नए घाट और कंक्रीटीकरण जैसे काम हुए, जबकि एएसआई ने केवल मरम्मत की अनुमति दी थी। इतना ही नहीं, मंदिर परिसर के पुराने पेड़ काटे गए जिससे पर्यावरणीय संतुलन भी बिगड़ा।

एएसआई की रिपोर्ट

एएसआई द्वारा जनवरी और मार्च 2024 में किए गए सर्वेक्षण में पाया गया कि मंदिर की बाहरी दीवारें और मूर्तियाँ क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। दरारें, नमी और छत से पानी का रिसाव संरचना के लिए खतरनाक बताए गए। चारदीवारी भी जर्जर हालत में मिली।

स्थानीय समर्थन

साउथ इंडियन एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज के छात्रों ने भी शोध कर बताया कि नगर परिषद के निर्माण कार्यों से मंदिर के आसपास का संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र नष्ट हो गया है। अमन सिंह और अनामिका शर्मा के अनुसार, मंदिर क्षेत्र में अवैध अतिक्रमण तक हो चुके हैं।

एएमसी और एएसआई के बयान: अंबरनाथ का 11वीं सदी का शिव मंदिर खतरे में

जहाँ एएमसी सीईओ उमाकांत गायकवाड़ का कहना है कि सभी कार्य वैध अनुमति और विकास परियोजना का हिस्सा हैं, वहीं एएसआई के डॉ. अभिजीत आंबेकर ने स्थिति गंभीर मानते हुए नगर निगम को नाले का रुख बदलने और मंदिर की तात्कालिक मरम्मत करने का निर्देश दिया है।

निष्कर्ष

यह विवाद अब केवल धरोहर बनाम विकास की लड़ाई नहीं रह गया है, बल्कि कानूनी, पर्यावरणीय और सांस्कृतिक संरक्षण से जुड़ा बड़ा मुद्दा बन गया है। अगर समय रहते कदम नहीं उठाए गए तो 11वीं सदी की यह अनमोल धरोहर, आने वाली पीढ़ियों के लिए केवल इतिहास के पन्नों तक सिमट कर रह जाएगी।

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