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राज्य भाषा विवाद: सिद्धारमैया बोले — “हिंदी और अंग्रेज़ी बच्चों की प्रतिभा को दबा रही हैं”

राज्य भाषा विवाद: सिद्धारमैया बोले — “हिंदी और अंग्रेज़ी बच्चों की प्रतिभा को दबा रही हैं”

राज्य भाषा विवाद: कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि हिंदी और अंग्रेज़ी का बढ़ता प्रभाव स्थानीय भाषाओं और बच्चों की रचनात्मकता को नुकसान पहुँचा रहा है। उन्होंने केंद्र सरकार पर “हिंदी थोपने” का आरोप लगाया।

📰 क्या है विवाद की जड़?

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने हाल ही में दिए एक बयान में कहा कि अंग्रेज़ी और हिंदी भाषाओं का बढ़ता प्रभुत्व बच्चों की मातृभाषा और स्थानीय संस्कृति को नुकसान पहुँचा रहा है।

उन्होंने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि “देश में हिंदी को थोपा जा रहा है”, जिससे क्षेत्रीय भाषाओं की पहचान खतरे में पड़ रही है।

यह बयान उस समय आया है जब केंद्र और राज्यों के बीच भाषा नीति पर टकराव एक बार फिर तेज हो गया है।

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🏫 शिक्षा और भाषा का संबंध: राज्य भाषा विवाद

सिद्धारमैया का कहना है कि शिक्षा बच्चों की मातृभाषा में होनी चाहिए, तभी उनकी सोच और रचनात्मकता विकसित होगी।
उन्होंने कहा —

“जब बच्चों पर हिंदी और अंग्रेज़ी का दबाव डाला जाता है, तो वे अपनी अभिव्यक्ति खो देते हैं। कन्नड़ जैसी भाषाओं की जड़ें कमजोर होती जा रही हैं।”

इस बयान के बाद कई कन्नड़ संगठनों ने मुख्यमंत्री के रुख का समर्थन किया है, जबकि कुछ लोगों ने इसे “राजनीतिक बयान” करार दिया है।

🏛️ केंद्र बनाम राज्य का दृष्टिकोण: राज्य भाषा विवाद

केंद्र सरकार का मानना है कि हिंदी एक राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है और इसे देशभर में प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
वहीं, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल जैसे राज्यों का कहना है कि “भाषा का थोपना” संविधान की संघीय भावना के खिलाफ है।

🔥 सोशल मीडिया पर बहस छिड़ी

यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गया है। ट्विटर (X) और इंस्टाग्राम पर
#SaveKannada, #LanguageImposition, #HindiVsRegionalLanguage जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे हैं।

कुछ यूज़र्स ने लिखा —

“हिंदी सीखना गलत नहीं, लेकिन उसे ज़बरदस्ती लागू करना गलत है।”

जबकि अन्य का कहना है —

“एक भाषा से राष्ट्र की एकता मजबूत होती है, विभाजन नहीं।”

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💬 राजनीतिक असर

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह बयान आगामी कर्नाटक और दक्षिण भारत के चुनावों को प्रभावित कर सकता है।
क्षेत्रीय पहचान और सांस्कृतिक गर्व का मुद्दा लंबे समय से दक्षिणी राज्यों की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है।

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