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सौरव गांगुली और हरभजन सिंह की जगह मिथुन मन्हास को बीसीसीआई अध्यक्ष क्यों चुना गया?

सौरव गांगुली और हरभजन सिंह की जगह मिथुन मन्हास को बीसीसीआई अध्यक्ष क्यों चुना गया?

सौरव गांगुली और हरभजन सिंह को पीछे छोड़ मिथुन मन्हास बने बीसीसीआई अध्यक्ष। जानिए क्यों चुना गया उन्हें यह सर्वोच्च पद और कैसी होंगी आने वाली चुनौतियाँ।

रविवार को हुई बीसीसीआई की वार्षिक आम बैठक (AGM) में क्रिकेट प्रेमियों के लिए एक बड़ा सरप्राइज सामने आया। जहां सौरव गांगुली और हरभजन सिंह जैसे दिग्गज नाम संभावित उम्मीदवार माने जा रहे थे, वहीं मिथुन मन्हास ने सभी को चौंकाते हुए देश के सर्वोच्च क्रिकेट प्रशासनिक पद – बीसीसीआई अध्यक्ष – की कमान संभाल ली।

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सौरव गांगुली और हरभजन सिंह: मन्हास को क्यों मिली ये बड़ी ज़िम्मेदारी?

दिल्ली के पूर्व कप्तान और जम्मू-कश्मीर क्रिकेट संघ (JKCA) के क्रिकेट संचालन निदेशक के रूप में मन्हास का प्रदर्शन उनकी काबिलियत को दर्शाता है। 45 वर्षीय मन्हास ने जम्मू और श्रीनगर में क्रिकेट सुविधाओं के उन्नयन से लेकर पिचों के पुनर्निर्माण तक कई अहम फैसले लिए। इससे राज्य के क्रिकेटरों के खेल स्तर में जबरदस्त सुधार हुआ। यही कार्यशैली उन्हें क्रिकेट प्रशासन में एक सशक्त और भरोसेमंद चेहरा बनाती है।

सौरव गांगुली और हरभजन सिंह: बीसीसीआई अध्यक्ष पद की चुनौतियाँ

बीसीसीआई अध्यक्ष का पद सिर्फ प्रतिष्ठा नहीं बल्कि कड़ी जिम्मेदारियों से भरा होता है। सौरव गांगुली और रोजर बिन्नी जैसे पूर्व अध्यक्ष अपने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर की चमक से स्वतः सम्मान अर्जित कर चुके थे। लेकिन मन्हास को यह प्रतिष्ठा अपने काम से साबित करनी होगी।

आने वाले महीनों में उन्हें सबसे बड़ी चुनौती तब मिलेगी जब भारत टी20 विश्व कप 2026 की मेज़बानी करेगा। उस दौरान उनके प्रशासनिक कौशल की असली परीक्षा होगी।

मन्हास का क्रिकेटिंग करियर

मिथुन मन्हास का लंबा प्रथम श्रेणी करियर (157 मैच, 9714 रन) उनके अनुभव और धैर्य को दर्शाता है। उन्होंने दिल्ली टीम की कप्तानी करते हुए वीरेंद्र सहवाग, गौतम गंभीर, आशीष नेहरा, विराट कोहली और ऋषभ पंत जैसे बड़े नामों के साथ ड्रेसिंग रूम साझा किया और टीम में संतुलन बनाए रखा।

लोगों से जुड़ने की कला

मन्हास अपने रिश्तों को निभाने और बड़े खिलाड़ियों को साथ लेकर चलने की कला के लिए जाने जाते हैं। आईपीएल में पंजाब किंग्स और गुजरात टाइटन्स के साथ उनकी मौजूदगी इस बात का सबूत है। हालांकि विवादों से वे अछूते नहीं रहे, लेकिन मुश्किल परिस्थितियों में भी उन्होंने अपनी सख्त लेकिन निष्पक्ष छवि बनाए रखी।

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निष्कर्ष

बीसीसीआई का अध्यक्ष बनना आसान नहीं है। सौरव गांगुली और हरभजन सिंह जैसे बड़े नामों को पीछे छोड़कर मन्हास का इस पद तक पहुँचना बताता है कि बोर्ड अब ऐसे नेताओं को आगे लाना चाहता है जो काम से अपनी पहचान बनाएँ, न कि सिर्फ नाम से। अब देखना होगा कि आने वाले महीनों में मिथुन मन्हास अपनी कार्यशैली और नेतृत्व क्षमता से किस तरह भारतीय क्रिकेट को नई ऊँचाइयों पर ले जाते हैं।

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