क्या उपराज्यपाल पांच मनोनीत सदस्यों पर सरकार की सलाह मानेंगे? जम्मू-कश्मीर का बड़ा सवाल
क्या उपराज्यपाल पांच मनोनीत सदस्यों पर सरकार की सलाह मानेंगे? जम्मू-कश्मीर का बड़ा सवाल
क्या उपराज्यपाल पांच मनोनीत सदस्यों पर सरकार की सलाह मानेंगे? जम्मू-कश्मीर में पांच मनोनीत सदस्यों को लेकर सरकार और उपराज्यपाल के बीच अधिकारों पर बहस। क्या एलजी सरकार की सलाह पर अमल करेंगे या खुद निर्णय लेंगे? जानिए पूरी खबर। जम्मू-कश्मीर में उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली सरकार के सत्ता में आने के एक महीने बाद भी उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने विधानसभा में पांच सदस्यों को मनोनीत नहीं किया है। बड़ा सवाल यह है कि क्या एलजी खुद पांच सदस्यों को मनोनीत करेंगे या सरकार की सलाह पर अमल करेंगे।
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के अनुसार, एलजी विधानसभा में पांच सदस्यों को मनोनीत कर सकते हैं, जिनमें दो महिलाएं, दो प्रवासी कश्मीरी पंडित, जिनमें से एक महिला होनी चाहिए, और एक पीओके से विस्थापित व्यक्ति शामिल हैं। पांच सदस्यों के मनोनयन के बाद विधानसभा की संख्या 95 हो जाएगी। पांच मनोनीत सदस्यों के पास वोटिंग का अधिकार होगा।
कानूनी विशेषज्ञों की इस बात पर अलग-अलग राय है कि क्या एलजी के पास सरकार से सलाह किए बिना पांच सदस्यों को मनोनीत करने का विवेकाधिकार है। कुछ का कहना है कि एलजी खुद सदस्यों को मनोनीत कर सकते हैं, जबकि अन्य का मानना है कि उन्हें निर्वाचित सरकार की राय पर चलना होगा।
नेशनल कॉन्फ्रेंस के एक नेता ने कहा कि एलजी सरकार की बात सुन सकते हैं। उन्होंने कहा, “उन्हें (उपराज्यपाल को) कैबिनेट द्वारा सुझाए गए नामों पर ही विचार करना चाहिए। सदन में गैर-प्रतिनिधित्व वाले समुदायों के सदस्यों को चुनना निर्वाचित सरकार का अधिकार है। निर्वाचित सरकार की मौजूदगी में एलजी को ऐसे फैसले लेने का संवैधानिक अधिकार नहीं है।” हालांकि, जम्मू-कश्मीर भाजपा के मुख्य प्रवक्ता और वकील सुनील सेठी ने कहा कि विधानसभा में पांच सदस्यों को नामित करने के लिए एलजी को जम्मू-कश्मीर सरकार की सिफारिश की जरूरत नहीं है। सेठी ने कहा, “यह अधिकार केवल एलजी के पास है और प्रशासन का इसमें कोई अधिकार नहीं है।”
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